प्रेम तुम से तब भी था अब भी है...


आपको फ़िक्र होनी चाहिए जब वो जो बग़ैर आपके सोचे एक पल न रह पाये और अचानक वो लम्हें-दिन गुज़ारने लग जाए आपको सोचे बग़ैर.

नहीं ऐसा नहीं है कि प्रेम कम हो गया है या कोई और आ गया है. बारहा वो आपकी नज़र-अंदाज़ियों का सिला होता है.

अव्वल-अव्वल में कोशिशें होती हैं कि प्रेम बचा रह जाए. बचाने के उस दौर में आग्रह होता है, मान-मनुहार होता है, शिकायतें होती हैं मगर फिर वो दौर भी आता है कि जब सामने वाला हार मान लेता है. उन कोशिशों की भी एक मियाद होती है.

इस मियाद के ख़त्म होने से पहले आपको रोक लेना होता है. थाम लेना होता है और यक़ीन दिलाना होता है कि, 
“प्रेम तुम से तब भी था अब भी है. मैं रह नहीं पाउँगा तुम्हारे बग़ैर. तुम रहो और भरपूर रहो. प्रेम तो तुम ही हो जानाँ!”

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