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Showing posts from May, 2018

खुश तो हो ना ??

- ठीक हो न! वहाँ तुम ख़ुश तो हो?  - हाँ! - वो लाता है न तुम्हारे फूल? ले जाता है न वीकेंड पर बाहर? - हाँ! - फिर बढ़िया है. मैंने भी तुम्हारे लिए ख़ुशियाँ ही माँगा था. चलो फिर चलता हूँ. ख़ुश रहना. —- और फिर उसने बाइक स्टार्ट कर लिया. लड़की चाहती थी कि बताए उसे अब फूल उसे ख़ुश नहीं रख पाते. तुम्हारे बग़ैर अब कहीं जाने का मन नहीं होता. मुझे शहर का हर कोना तुम्हारे नहीं होने का अहसास करवाता है. अब सिर्फ़ वीकेंड होता है. इस दिन मैं और ख़ाली हो जाती हूँ!

प्रेम तुम से तब भी था अब भी है...

आपको फ़िक्र होनी चाहिए जब वो जो बग़ैर आपके सोचे एक पल न रह पाये और अचानक वो लम्हें-दिन गुज़ारने लग जाए आपको सोचे बग़ैर. नहीं ऐसा नहीं है कि प्रेम कम हो गया है या कोई और आ गया है. बारहा वो आपकी नज़र-अंदाज़ियों का सिला होता है. अव्वल-अव्वल में कोशिशें होती हैं कि प्रेम बचा रह जाए. बचाने के उस दौर में आग्रह होता है, मान-मनुहार होता है, शिकायतें होती हैं मगर फिर वो दौर भी आता है कि जब सामने वाला हार मान लेता है. उन कोशिशों की भी एक मियाद होती है. इस मियाद के ख़त्म होने से पहले आपको रोक लेना होता है. थाम लेना होता है और यक़ीन दिलाना होता है कि,  “प्रेम तुम से तब भी था अब भी है. मैं रह नहीं पाउँगा तुम्हारे बग़ैर. तुम रहो और भरपूर रहो. प्रेम तो तुम ही हो जानाँ!”

इश्क जिंदा है ...

हाँ , जब उसको उसकी वाली छोड़कर जाती है तो कुछ नहीं होता। बस शौक, लगाव और इच्छाएं मर जाती है सभी। ऐसा नहीं कि मन ना हो कभी, बस दिल हट जाता है इन सबसे। हाँ फिर वो ईगो, सेल्फ रिस्पेक्ट, और ऐटिट्यूड वाला नाटक भी तो नहीं हो पाता मुझसे।   खैर तुम्हें गए अरसे बीत गए हैं, पर जिस तरह तुम्हें लिखा है और महसूस किया है अपने शब्दों में, ऐसे लगता है कल की ही बात हो।    सच कहूँ किसी और पर आज भी दिल नहीं जाता। पसंद बहुत आती हैं, पर तुम्हारी बात ना अलग थी। तुम ना सिर्फ तुम थी। इसीलिए आज तक तुम्हा री जगह कोई ले नहीं पाया। या शायद तुमने लेने ही नहीं दी। और शक नहीं करता तुम पर। लेकिन हाँ , एक झूठी सी ईमेज बनानी पड़ती है खुद में, जैसे तुम्हेँ कोई मिल गया हो मुझसे बेहतर। और तुम खुश हो उसके साथ। बस तुम्हें खुश देखना ही मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश है। पर ये भी तो कि तुम नहीं आ सकती हो अब। प्रेम के साथ कई मतलब और भी तो जुड़ गए हैं। लेकिन प्रेम तो बिना अपेक्षाओं के होता है ना, जहाँ अभिलाषाओं की भी कोई जगह नहीं होती। ऐसा कहकर मेरा मतलब कोई तुम्हारे वाला "टोंड" मारना नहीं है और हां वो &q

अधूरी कहानी ....

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मेरी सांसे धीरे-धीरे रूक रही होगीं। नदी की गीली रेत की तरह मेरी जिदंगी की मुट्ठी से मेरी सभी ख़्वाहिशें और सभी सपने एक - एक कर निकलते जा रहे होगें और उस पल मैं बिल्कुल भी नहीं सोचूंगा कि कुछ दिन की जिदंगी और जी लूँ। बस उस समय सब कुछ जल्दी से खत्म हो जाना चाहिए , सूरज शाम के बजाय दिन मे ही ढल जाना चाहिए। शाम के 4 बजे ही अंधेरी काली अमावस की रात हो जानी चाहिए । पक्षी मेरे ऊपर उडने की बजाय मेरे पास बैठ कर मुझे विदाई देते हुए पूछा रहें हो.... "क्यूँ पंडित ,जी ली क्या जिंदगी तूने अपने उसूलों पर ? " और वही पास में नदी किनारे बैठी होगी तुम। धीरे-धीरे मुस्करा कर मेरी कहानी को खत्म होते हुऐ देख रही होगी।